मुंह लटकाए फिर मुरारी लाल रोज की तरह बुड्बुराते हुए ऑफिस की तरफ़ बढ़ गए ... काम है की कोंई नयापन नही ... तनखा घर आने से पहले ही ख़तम हो जाती है .... बीबी है जो सुनती नही है .... बच्चे बेचारे अभी छोटे हैं तो मान जाते हैं चाहे डांट से चाहे पुचकार से। पर आख़िर कब तक ऐसा चलेगा। अगर कुछ नही हुआ तो कल क्या होगा जब बच्चे बड़े होंगे ... अभी तो किराया भी कम ही है पर मकान मालिक कह रहा था की छे महीने हो गए अब तो किराये की बात करें... उफ़ कितनी जल्दी दिन बीत जाता है ... आज नही तो कल मकान भी खरीदना है कब तक किराये के मकान में रहेंगे । .... कंपनी का मालिक तनखा नही बढाता पर क्या करें दूसरी नौकरी इतने आसानी से कहाँ मिलती है ... हर तरफ़ प्रॉब्लम ही प्रॉब्लम .... कही सिस्टम की तो कहीं सोसाइटी की । बहुत लोगों को कोस लिया बहुत सिस्टम को भी गाली दे दी पर क्या बदला ... कुछ भी नही, बस बैंक बैलेंस जो इस नए किराये के घर से पहले थोड़ा बहुत दीखता था वो अब कभी भी सौ रुपयों से ऊपर नहीं आ पाता। चलो कम से कम कोंई नई चीज़ मिली blame करने के लिए ... "किराये का मकान"।
अचानक से ख़ुद का काम छोटा लगने लगा और लगा की जितना पैसा मुझे इस काम को करने का मिलता है उससे ज्यादा कोंई क्या देगा ... ख़ुद को हीं तुलनात्मक नजरिये से देखते हुए ख़ुद बा ख़ुद अपने आप को भी छोटा बना लिया। इंसानी फितरत ... जो अगर सहमी होती है तो अपने आप को बहुत छोटा देखती है और ताकतवर होती है तो उसे सब बहुत छोटे दिखने लगते हैं ...
पर इस बार घर की परेशानियाँ डर से ज्यादा ताकतवार हो रही थी ... मन में सोचा की अब चाहे जैसा भी हो कुछ तो करना ही पड़ेगा.... महंगाई मुह फाड़ कर खड़ी है। हर चीज़ हाँथ से दूर होती दिख रही है .... तनखा बढ़वानी ही पड़ेगी ... नही तो उधारी की नौबत आ जायेगी और लिया भी तो उसे वापस कैसे करूँगा..... कुछ न कुछ करना पड़ेगा पर क्या ... मन का डर कभी ऊपर आता तो कभी मजबूरी।
दिमाग की खिड़कियाँ खुलने लगी थीं ... ऑफिस के अन्दर कदम रखा ... नए जोश के साथ काम करना शुरू कर दिया ... देर तक रुकता देर से मेल करता, बॉस के पास नए नए सवाल लेकर पहुँच जाता की ये क्यों है? ऐसा क्यों है ? बॉस भी प्रभावित हो गया था की आख़िर ये क्या हो गया इसे...
रोज अख़बार पढ़ते थे। ख़बर आई की कुछ जगहों पर कोंई प्रॉब्लम हो गई है। शेयर मार्केट लुड़क गया है। मन में हंसा की इतना बड़ा अपने को लगाते हैं पर किसी भी प्रॉब्लम को कंट्रोल नही कर सकते।
महीने बीत गए ... आख़िर वो दिन आ गया जिस दिन की तैयारी हमने महीनो से की थी ... पर इस बार मैनेजमेंट ने शायद कुछ महीने पहले ही मीटिंग रख दी। मन में आया की चलो अच्छा ही है ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा इस बार ... मन में सोचा .. इस बार तनखा की बात होगी शायद...... हाँ जरूर होगी। अगर वो नहीं करेंगे तो मैं ख़ुद ही बात करूँगा।
मेरा नम्बर आया ... सीना चौडा कर कर अन्दर पहुँच कर सामने की कुर्सी पर बैठ गया।
बॉस ने मेरे पेपर देखे और शुरू किया ... मुरारी बाबु! ... इस बार अपने काफ़ी मेहनत से काम किया ... सारा काम समय से पहले और बेहतर ढंग से किया है... और आपकी इसी बात को देखकर ... मैनेजमेंट ने निर्णय लिया है.... की आप की नौकरी सलामत रहेगी परन्तु मार्केट की प्रॉब्लम के चलते आपकी १० प्रतिशत तनखा कम करनी पड़ेगी.... अगर कुछ महीने में सब कुछ सही हो गया तो आपकी तनखा फिर से वापस उतनी ही कर दी जायेगी ... बॉस ने बात को ऐसे बोला की जैसे बहुत बड़ा अहसान कर दिया हो मुझपर....
अब क्या बोलूँ ... पावों के नीचे से ज़मीन निकल गई ... आया था तनखा बढ़वाने पर यहाँ नौकरी के लाले पड़ गए थे...
बात संक्षिप्त थी क्योंकि सिर्फ़ उन्हें इतना ही बताना था .... बाहर आया ... बहुत लोग अपना समान पैक कर रहे थे। अपनी डेस्क पर वापस आ कर सर पर हाँथ रख कर बैठ गया।
बगल वाले ने पुछा ...क्या हुआ ... गई ?
मैंने कहा ...नही पर तनखा....
तो क्या हुआ बाकी लोगों से तो अच्छा है .... ऊपर वाले का शुक्र मनाओ बच गए ....
मैंने हामी भरी और घड़ी पर निगाह डाली ...
6 बज गए थे और दिन भी अच्छा नही बीता ... टिफिन उठाया और धीरे धीरे कदम बाहर की तरफ़ बढाये ... कदमों के ऊपर लग रहा था की पचास पचास किलो के पत्थर बाँध दिए गए हों ...इतनी मेहनत के बाद क्या मिला ... लेने गए थे , दे कर आ रहे हैं ... दिमाग काम नही कर रहा था ...किसी को कोसने तक को दिल नही किया ...कोस लेता तो शायद दिल हल्का हो जाता ...
थोडी दूर चला और लगने लगा की सारे रस्ते बंद हो गए हैं। अब क्या करूँ ... मन किया की फूट फूट के रोऊँ .... पर आदमी हूँ ... जब थोडी देर और चला तो मन ने कहा की अब तो एक ही रास्ता है की खर्चों पर नियंत्रण किया जाए ... पर कैसे ... मन अब तक तो गुना भाग करने में एक्सपर्ट हो गया था तो फ़िर शुरू हो गया ...पर इस बार नई वाली तनखा के साथ ...
अब तो सिर्फ़ जो सबसे ज्यादा जरूरी काम है उन्ही को करूंगा... घर के बल्ब.... अब उन्हें उतना ही प्रयोग में लाऊंगा जितनी ज़रूरत है ... और दो के बजाये एक ही सब्जी बने ... हाँ ! ऐसे भी मुझे एक ही सब्जी अच्छी लगती है ... दो तो वैसे भी ज्यादा है हमारे जैसे आदमी के लिए, वो तो अमीरों के घर होता है की जितने लोग उतनी सब्जी ... और बस के बजाये साईकिल से चलूँगा तो निश्चित ही हमारा काम चल जाएगा।
मन की सारी गणित पूरी हो चुकी थी और लग रहा था की बजट कंट्रोल में आ गया था .... मैं मुस्कुराया और सोचा ... चलो अब कोंई प्रॉब्लम नही है अगर इसी तरह किया जैसा सोचा है तो सब ठीक से चल जाएगा और जब तनखा वापस पूरी हो जायेगी तो उसी में पैसे फिर से बचने लगेंगे ... अरे वाह! ये पहले क्यों नही सोचा मैंने ... बेकार में इतनी मेहनत की ... लेकिन अब मजबूरी है की काम करना कम नही कर सकता .... बॉस के सामने जो इज्ज़त बनी हुई है उसे तो मिटा नही सकता न .... मगर इतनी सी बात समझाने के लिए ऊपर वाले को मेरे साथ ऐसा नही करना चाहिए था ... पर कोई बात नही हम मीडियम क्लास वालों के साथ तो ऐसा ही होता है।
अगला दिन आया... इस दिन के बाद से अखबार का कुछ ज्यादा ही इंतज़ार होने लगा था । रोज अखबार देखने लगा की कब मार्केट ठीक हो और कब मेरी तनखा वापस पूरी हो जाए .... फिर से ऑफिस टाइम से पहले जाने लगा ... जितना काम था उसे पूरे मन से करने लगा क्योंकि इस बार उम्मीद पूरी थी की मार्केट के ठीक होते ही मेरी तनखा वापस ठीक हो जायेगी और इस बार से पैसे जरूर बचने लगेंगे ...
नया जोश, नई उम्मीद, नया ख्याल ... वही काम पर इस बार कुछ नया था .... नई सी उम्मीद उठ रही थी मन में ... और लगने लगा की इस बार तो जरूर प्रमोशन होगा....बस मार्केट सुधर जाए।
ख़राब वक्त कुछ न कुछ अंततः सिखा के ही जाता है ... तो उसे ख़राब क्यों कहें ... जो भी है अच्छा ही है ... जो होता है अच्छे के लिए ही होता है ।
--- प्रशांत
2 comments:
cool.. well written.. but after even disappointed you should never feel down... bcoz its an opportunity to learn how to deal with difficult situation... we dont get experience by just working...we also get experience with these difficult situation..
Thanks for your comments.
I tried to write it down in such a way where it shows the reality of the life at the same time it also gives the messsage that "The richest person is not the one who has the most, but the one who needs the least".
you are right. The experience of life is everything and everyday is good for one or other reason.
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