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Monday, 20 February 2017

नये मौसम का राही हूँ मगर बातें पुरानी है
यहीं रास्ता तो जीवन है यहीं सबकी कहानी है
यहाँ नाहक तराज़ू ले के निकले हो ऐ मेरे दोस्त
सभी अच्छे हैं, हालातों ने कुछ रच दी कहानी है
मेरे लहजों की सिलवटों का तुमसे सामना होगा
मेरे और तेरे रिश्तों की ये नाज़ुक शर्मशारी है
कश्मकश होती रहती है दिलो दिमाग़ की हरदम
वो बातें लब पे ना आती है जो दिल में पुरानी हैं
कभी तो मुड़ के देखो छोड़ के जाते हुये लमहों
तेरी आँखों में सपना हैं मेरी आँखों में पानी है
लिये ज़हमत ज़माने में क़मीं कोई नहीं लेकिन
ज़मीं और असमां के बीच में क़द की कहानी है
समय का चक्र है ऐसा कभी ऊपर कभी नीचे
मैं कैसे रोक लूँ इसको नहीं यह जादूकारी है
वो रिश्ते अपने दामन मे कभी हमने समेटे थे
नज़र वो भी दिखाते है नज़र जिनकी उतारी है
असर होता मोहब्बत में तो हम बेज़ार क्यूँ होते
मेरे और तेरे रिश्ते में जहाँ की दुनियादारी है
बता देना अगर कुछ बच गयी तासीर-ए-उल्फ़त
सुना मेरे मुख़ालिफ़ से तुम्हारी पारदारी है
अगर फ़ुर्सत में बैठूँ तो बहुत कुछ याद आता है
हमारे "राख"बनने की बड़ी दिलकश कहानी है
कभी तो पास आक़े दिल की बातें चार कर देखो
जो बाज़ी तुमने हारी है वो हमने भी तो हारी है।

- प्रशांत (राख.)

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