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Monday, 20 February 2017

वहीं है दिन वहीं हैं रात, बस बदले हुये हैं हम
नहीं बदले कोई हालात, बस बदले हुये हैं हम
पुरानी दोस्ती और फ़र्ज़ का मौसम ना बदला है
नयी अब कोई ना आवाज़ दो बदले हुये हैं हम

पिघलते रंग हैं तस्वीर के तो क्या बनाऊँ मैं
सताये वक़्त की दहलीज़ पे क्यूँ लौट जाऊँ में
वहीं उलझे हुये जज़्बात है और है वहीं मौसम
नये अब ना ग़मों का साज दो बदले हुये हैं हम

पुराना ज़ख़्म, रंज ओ ग़म हमारे साथ चलता था
कभी वो टीस भरता था कभी बेबाक़ हँसता था
मगर अब दर्द सहने की हुई है थोड़ी आदत कम
मुझे अब ला नयी तलवार दो बदले हुये हैं हम

नहीं बदली हक़ीक़त और इंसा भी नहीं बदला
हमारे और तुम्हारे बीच का रिश्ता नहीं बदला
मगर अब रोशनाइ हो रही है थोड़ी सी मद्धम
नया अब ना कोई अहसास दो बदले हुये हैं हम

समय का छूटता बंधन वही हो तुम यही हैं हम
तेरे इल्ज़ाम के बदले सफ़ाई दे ना पाए हम
अबद के दाग़ क्या है पूरा दामन अब दिखाता हूँ
कोई इस "राख" को इंसाफ़ दो बदले हुये हैं हम

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