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Monday, 20 February 2017

देख कर तूफ़ान हरपल, रास्तों पर चल पड़ा
ले लगा ली ठोकरें, पत्थर से मैं मूरत बना
आज मैं तैयार हूँ लड़ने को खुद की आन पर
देख लो ए वक़्त मैं तैयार अपनी जान पर.

आज फिर दीपक कोई रोशन करूँगा राह में
जो बुझेगा ना किसी आँधी किसी तूफ़ान में
रंग लाएँगी दुआएँ दिल से निकली मान कर
देख लो ऐ वक़्त मैं तैयार अपनी जान पर.

हौसला फिर बढ़ रहा है जो कभी कमज़ोर था
एक सपना बुन रहा है जो कभी गठजोड़ था
"राख" सा निर्जीव था मैं, जी गया सम्मान पर
देख लो ऐ वक़्त मैं तैयार अपनी जान पर.

तुम कभी कमज़ोर ना थे, ना खुदा कमज़ोर था
वक़्त जो पीछे था निकला वो ना तेरी ओर था
आज लगता है उसी ने भर दी झोली माँग पर
देख लो ऐ वक़्त मैं तैयार अपनी जान पर.

- प्रशांत (राख.)

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