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Tuesday, 25 April 2017

पिता की चिठ्ठी ! (मेरे पिता को समर्पित.)

मेरे प्यारे बच्चे,

तुम शायद सोच रहे होगे की पापा की चिठ्ठी कैसे आ गई ... पापा जो सबसे पीछे खड़े होते थे और उन्हें शायद पता भी नही होता था की हमारा बच्चा क्या कर रहा है किस क्लास में है ... और उनका तो सिर्फ़ काम था की नौकरी के बाद सिर्फ़ मम्मी को तनख्वा लाकर दे देना ताकि माँ सारी चीज़ों का ध्यान रख सकें। उन्होंने हमेशा ऑफिस के बाद कभी बच्चों को इतना समय नही दिया जो याद बन सके.... पता नही किन किन बातों में हमेशा  व्यस्त रहते थे ।

मेरा तुम्हारी मम्मी से समय समय पर अनबन और खर्चे पर नियंत्रण रखने की बातों पर तनातनी तुम लोगों को कभी अच्छी नहीं लगी और भी कई सारी बातें ... मुझे सब कुछ पता था, तुम लोगों की नज़रें मुझे सब कुछ बता देती थी। इन्ही सब छोटी बड़ी बातों की वजह से शायद तुम लोगों के लिए पिता शब्द का मतलब एक ऐसा आदमी बन गया था जो घर में तो रहता है पर बाहर वाला बनकर .... जिसे घर से कोई ख़ास मतलब नहीं था।

तुम लोगों को हमेशा यही शिकायत रही की मैंने कभी ये नही पुछा की तुम लोग क्या चाहते हो ... कभी रिजल्ट आने के बाद अगर नम्बर कम आए तो बहुत डांट दिया मगर अगर बहुत अच्छे नम्बर आए तो ज्यादा प्यार न किया ... तुम लोगों को ये लगता था की मेरा काम हमेशा से यही था की घर आने पर हिटलर की तरह रूल लगा देना और तुम सब लोगों के अपने व्यक्तित्व को उभरने का मौका नही देना। आज जो भी तुम हो वो अपनी माँ की वजह से हो क्योंकि बाप ने कभी वो काम नही किया जिसकी अपेक्षा तुम लोग रखते थे।

शायद तुम लोग सही हो क्योंकि वाकई तुम्हारी माँ ने तुम लोगों को बनाने में अपनी जिंदगी गुजार दी और उसने वो सब दिया जो एक बाप होते हुए मैं तुम्हे कभी नही दे पाया। शायद अपने प्यार को दिखाना मुझे कभी नहीं आया...और आज भी नहीं आता है.

आज भी याद है तुम्हारा जन्म हुआ था ...और जब मैंने तुम्हे पहली बार अपने हांथो में लिया था तो मैं शायद इतना खुश अपनी जिंदगी में कभी नही हुआ था। लगा की सारी जिंदगी की खुशियाँ मेरे हांथों में सिमट कर आ गई हैं। तुम्हारे नन्हे नन्हे हाथों की उँगलियों को छूकर ऐसा लगता था की मैं ख़ुद बच्चा बन गया। ऑफिस से घर आना और तुम्हे उठा कर हाथों पर झूला झुलाना मुझे दुनिया का सबसे अच्छा काम लगने लगा था। तुमको देखने से आँखें भर आती थी हम दोनों की ... और लगता था की तुम ईश्वर की सबसे बड़ी देन हो जो की तुम आज भी हो तुम मेरे लिए... हमको पता भी नही चला की तुम कब एक साल के हो गए। धीरे धीरे तुम अपने घुटनों से चलते हुए मेरे पास आने लगे ... और मैं तुम्हे हांथों में उठा कर बहुत ऊपर उठा देता था और तुम किलकारियां मार कर हँसते थे। सच बताऊँ लगता था की यही पल है जो ठहर जाए और मैं उसे जी लूँ जी भर कर ... लेकिन तुमको बड़े होते हुए देखने का भी बहुत मन करता था ... दिल चाहता था की इतना बड़े हो जाओ की मेरी ऊँगली पाकर कर साथ चलो और मैं जी भर के तुम्हारे साथ खेलूं। वो दिन भी आए जब तुम मेरी उंगली पकड़ कर लड़खड़ा कर चलते और तुमको इस तरह से चलते देख कर लगता की बस तुमको देखता रहूँ ... मैं अपने आपको दुनिया में सबसे ऊपर पाने लगा ... क्योंकि अब तुम भी मेरे साथ थे। तुम्हारी माँ हमें हमें खेलते देखकर बहुत खुश होती थी और कभी कभी उसकी आंखों में प्यार भरे आंसू भी आ जाते थे ... आख़िर तुम्हारी माँ जो थी।

दिन बीतते गए ..... तुम लोग स्कूल जाने लगे और हमारा मिलना थोड़ा सा और कम हो गया क्योंकि तुम्हारे स्कूल और मेरे ऑफिस के बाद वक्त मिलना कम हो गया। अक्सर मैं आता था तो तुम सोते हुए मिलते थे या पढ़ाई कर रहे होते और दूसरी तरफ़ घर की जरूरतें भी बढ़ने लगी थी।

अब जब तुम्हारे साथ मिलने का और बात करने का समय कम होने लगा तो मैंने दूसरा सहारा लिया ... तुम्हारी माँ का ... जो मुझे सब कुछ बताने लगी तुम लोगों के बारे में... और मैं कभी कुछ बात पे बहुत खुश होता तो तुमको सोते समय प्यार कर लेता या कभी नाराज़ हो जाता तो माँ तुम्हारा पक्ष ले लेती थी। दिन बीतने लगे और ये बात अब रोज की हो चुकी थी ..... माँ तुम लोगों के बारे में सब कुछ बताती और मैं उनको सुनता रहता था।

तुम लोग मेरे दिल और दिमाग से कभी भी दूर नही हुए .... जब भी मौका मिलता था तो अपने घर वालों के लिए कुछ ना कुछ लेकर जरूर आता था ....कभी काम पर बाहर जाता तो कोशिश करता की तुम सब के लिए कुछ न कुछ जरूर लेकर आऊ पर शायद ये हर बार मुमकिन नही हो पाया अब प्यार दिखाने का सिर्फ़ यही तरीका समझ में आता था मुझको की तुम लोगों को बहुत खुश देखूं। तुम लोगों की पल भर की खुशी के लिए मैं और तुम्हारी माँ कुछ भी करने के लिए तैयार रहते थे।

समय बदलता है ....यादें बदलती हैं ... बहुत कुछ भूल जाती हैं और कुछ याद रहती हैं ... पर मुझे एक पल भी नही भूला .... तुम्हारे बचपन से लेकर अब तक सबकुछ याद है और एक लम्हे में समां गया है ... मगर जाने क्यूँ आज भी तुम मुझसे बहुत दूर हो ... शायद काम में बहुत व्यस्त होगे .... या तुमको मेरी याद नहीं आती होगी ....

बचपन हमेशा नए अनुभव को पुराने अनुभव के ऊपर रखता रहता है .... और पुरानी यादें जिनमें मैं तुम्हारे बहुत करीब था वो धुंधली हो गई होंगी जिसके वजह से तुम लोग बहुत दूर हो गए हो मुझसे पर विश्वास करो मैं आज भी उतना ही करीब हूँ तुम लोगों से .... मेरे लिए समय नही बदला ....

आज बहुत याद आ रही थी तो ख़त लिखा ... तुम लोगों में से कोई भी बात करने को नही था ना हमारे पास .... तुम्हारी माँ मेरे पास बैठी है और वो कह रही है की मेरा भी बहुत सारा प्यार लिखना।

बहुत बहुत प्यार मेरे बच्चों ... और हमेशा खुश रहो और जीवन की सारी खुशियाँ तुमको मिले ...

तुम्हारा पिता.
- प्रशांत (राख.)

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